Menu
blogid : 8924 postid : 39

नज्में –तल्ख सच्चाइयाँ

khwahishein yeh bhi hain
khwahishein yeh bhi hain
  • 195 Posts
  • 470 Comments

अख़बार की कतरनें ,लोगों के चेहरों पर उतरी -नमकीन धूप,कुछ घटनाएँ,कुछ बातें और कुछ इंसानी सोच के नश्तर -इतने तीखे ,तेज बार करते हैं कि व्यवहारिकता के फाहे- का लिबास पहनाने की पुरजोर कोशिशों के बाद भी,जेहन की संजीदगी कुछ भी मनाने को राजी नहीं होती -और तब माहौल में एक दम घोटू -धुँआ भीतर ही भीतर छीलता,नोचता,कचोटता है कभी -कभी तो चिघाड़ता भी है ।ऐसे में मेरी नींद कत्ल हो जाती है और,जिन्दा हूँ इस अहसास को महसूस करने के लिए -बेजान सी नज्मों की गरमाहट खून में रवानगी का संचार सा करती हैं ,तब …..नज्मों की जो सुगबुगाहटें सुनाई देती हैं उनके साथ शामिल हो जाती हूँ और वह हैं ………………………………………………………तल्ख सच्चाइयाँ .……………………….?

१-खुशबुएँ -बीमार सी ,फूलों में है कम ताजगी ।
आज -कल दिल की जमीं पे है बड़ी वीरानगी ।।
=
१-सच कहते हैं -जीते जी, तशलीम नहीं कर पायेगें ।
दिल की सूरत -अल्फाजों में, बयाँ नहीं कर पायेगें ।।
=
१-बंद -लिफाफे मत ये खोलो,मर्म और गहरे होंगे ।
तेरे -मेरे जज्बातों के,मेले और घने होंगे ।।
=
१–अपनी -फितरत से अलग हो,जी रहा है आदमी ।
जेहन -की हर बात पे,मुंह सी रहा है आदमी ।।

स्वरचित -सीमा सिहं

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply