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बाड़ आने से पहले ?

khwahishein yeh bhi hain
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बाड़ आने से पहले ?
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वह जयपुर के जाने -माने अस्पताल के एक नम्बर -वार्ड के सात नम्बर -बिस्तर पर अचेताबस्था में बेसुध पड़ी थी ।दिव्या -राणा उस राजशाही- रजवाड़े परिवार की बेटी थी,जहाँ बेटी के बड़ी होने से पहले ही बचपन में ही -मां-बाप और अन्यों की सहमति से, अपने ही समाज के किसी रजवाड़े परिवार में वर -बधू घोषित कर दिए जाते थे ।दिव्या -राणा का भी दूल्हा निश्चित कर दिया गया था ।इस बात पर मैं उसकी खूब चुटकियाँ लेती कि और कहती -तुम कैसी राजकुमारी हो ? राजकुमारियाँ तो स्वयंवर रचती हैं -पर तुम ….?पुश्तों -पुश्तों चली आ रही सामंतशाही की आतंकी व्यवस्था की परम्परा को तोड़ना उस सुकोमल दिव्या के बस की बात कहाँ थी ? उसके लिए सब कुछ दो -परिवारों के बीच सहमति ही उसकी ख़ुशी,इच्छा और नियति भी थी ? दिव्या ने राजशाही आतंकी व्यवस्था का विरोध तो किया पर रास्ता …..? जान भी जा सकती थी ,मैंने -होश में आने पर ,उसे डाँटते हुए कहा -तब उसने अपने चेहर के मनोभावों से जो कहा,वहां जन्म हुआ (बाड़ ……)इस कविता का ….

बाड़ आने से पहले ?
१ — उसकी- हंसी में ?
— निश्छलता थी और था व्यंग्य ।
— उसने पहन लिया था ..
–खामोशी का चुड़ा…
— जोड़ -दिया था,धागे से धागा ।
— और -तोड़ दिया था ,सपनों से मिलने का वादा ?
2 –पुचकार कर ….किसी ने कहा था ?
— सो -मत जाना –
–भूल -मत जाना …बेदी के बचन ?
–सांसों के धन को देना -गाढ़।
–इच्छाओं को खूंटे से -देना बांध ।।
3 –जमीनें बेचीं जाती हैं !
–खरीदी -जाती हैं !
–बाड़-आने से पहले ….?
–मेड़ें -बांधीजाती हैं ..।।
स्वरचित -सीमा सिंह

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