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कुछ चोटें आवाज नहीं ……?

khwahishein yeh bhi hain
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कुछ चोटें आवाज नहीं ……?
सीने में कुछ नश्तर …!या- यूँ कहूँ कि कुछ हादसे -ऐसे होते हैं, कि उनकी टीस के घाव सूखने में ही नहीं आते ,और जिनके लिए, किसी को जिम्मेदार ठहराने की गुंजाइश भी -ऊपर वाला नहीं छोड़ता।तब इन्सान बहुत लाचार और मजबूर होता है ,और सोचता है! क्या कोई ऐसी अदालत है -जहाँ उस ऊपर- वाले के अन्याय के खिलाफ – अपील की जा सके -उफ़ …?दीपा -ऐसे ही हादसे का चेहरा है ।तकरीबन दो वर्ष से ऊपर होने को जा रहे हैं -पर अतीत में जब भी नजर जाती है ,वह अपने -बाजू में खड़ी नजर आती है। और उसके हिस्से के दर्द कि इम्तहाँ यह है कि यह सिलसिला खत्म होने का नाम ही …?ऐसे ही – कमजोर लम्हातों में -उसकी यादें अपने साथ -न जाने कहां-कहां ले गयी .और उसके तस्सवुर की दरियादिली -तो देखिए, कि मैं उसके कमरे में (अतीत में बीमारी के दिनों में जिसमें वह रही थी )दाखिल होकर खिड़की से जो द्रश्य देख रही थी ,उसी का साक्ष्य है ……….
.कुछ चोटें आवाज नहीं करतीं ?
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१- उसके -हिस्से की..
– फाँकें-सूख रहीं थीं ।
– हवा -खिड़की से बाहर आ -जा रही थी ..
– बाहर के शोर में ,आवाज दबी थी ।
२- आठ -वाई दस के घेरे में …
– दुनियाँ!घिरी थी ।
– हर -कोने में …
– एक परछाई खड़ी थी ।
– पोरों की सफेदी और बड़गई थी !
– चादर की सिलबटों से …
– पहचान की बू आ रही थी ।
– ताक पे रखा-दिया ….?
– उम्मीदें -जला रहा था ।
३- आखों के -गढ्ढे सूख रहे थे …?
– दीवारों पे – पपड़ियाँ जम गई थी ..?
– छत से- रेत झड़ रहा था ….?
– जिन्दगी ?सिमट रही थी ..
– मौत -पसर रही थी !
– और -?और -?और -?
४- ००००००००००००००
– कुछ -चोटें……
– सुनाई नहीं -देतीं ..
– दिखाई भी- नहीं देतीं …
– महसूस करने की-राह भी नहीं देतीं ..!
स्वरचित- सीमा सिंह

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