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द्रौपदी की अंतर्व्यथा !

khwahishein yeh bhi hain
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द्रौपदी की अंतर्व्यथा !
कई दिनों चले कुरुक्षेत्त के धर्म युद्ध में कौरव और पांडव सेनाओं के बड़े -बड़े योद्धा धरासाई हो चुके थे।कल- भोर की पहली किरण के साथ ही रणभूमि में चक्रव्यूह भेदन प्रवेश करने की पारी, वीर अभिमन्यु की थी।दोनों और के शिवरों में सेनापतियों द्वारा रणनीति की विचार -विमर्श की मंत्रणाएं चल रही थीं।वहीं द्रौपदी अपने खेमें में चिंतित,दुखी मन से अनेकों अभिप्शाओं से घिरी -भोर का इंतजार कर रही थी,और सोच रही थी ।धर्म युद्ध में दोषी दंड पता है ,लेकिन निर्दोष दंड नहीं पता- यह कहाँ लिखा है ?क्या दोष है मेरे पुत्र अभिमन्यु का ?जो धर्मराज युधिष्ठर ने उसे आज का प्रमुख सेनापति बनाकर युद्ध में जाने का प्रस्ताव स्वीकार लिया ?याज्ञसेनी द्रौपदी की अंतर्व्यथा की प्रतिध्वनी का जो स्पंदन महसूस होता वही है ………
द्रौपदी की अंतर्व्यथा !
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१- सबके मनों में ….
– कुछ न कुछ चल रहा था ।
– सब -टोह ले रहे थे ?
– कि-पत्थर किधर से गिरेगा !
– पानी -उबल -उबल कर,भाप हो रहा था ।।
२- नक्षत्तों की गणनाएँ ..?
– आकाश- बदल रही थीं ..
– विद्वता -बनवास जा चुकी थी !
– विवेक -सो चुका था ।।
– अनिंद्रा ,जाग रही थी,
– उसकी लटों से, खेल रही थी ।
– कुटिलता -हंस रही थी ..?
– अपनी- चाल चल रही थी ।।
३- कल क्या होगा ..?
– सोचकर ..सोचकर …
– द्रौपदी का सर्वच्च रो रहा था …!
– भोर- का तारा, संकेत दे रहा था ।
– सुबह: का प्रभात भी ..
– बादलों में छुप रहा था ..?
स्वरचित -सीमा सिहं

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