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एक माह पूर्व समीरा -पहली दफा कार्यालय आई थी,शालीन सौम्य खुबसूरत समीरा हम सबके आकर्षण का केंद्र थी ,प्रतीक का उसमें जरूरत से ज्यादा दिलचस्पी लेना किसी से छुपा नहीं था ।प्रतीक के अति-जिज्ञासु स्वभाव के कारण -समीरा मुश्किल के एक महीने का समय कार्यालय में व्यतीत कर सकी, और वह स्वयं ही इस्तीफा देकर घर बैठ गई ।
कभी -कभी अति उत्साह में जिज्ञासा- अनुभूति के आकर्षण के कारण ,हम सामने वाले के स्वभाव की प्रकृति को – संज्ञान में लिए बगैर, ऐसा कुछ पूछ बैठते हैं -जिसके लिए वह तैयार नहीं होता ,और अनजाने में ही माहौल संजीदा ….? प्रतीक के व्यवहार से समीरा भी शायद असहेज महसूस कर रही थी ,तभी तो वह इतनी जल्द नौकरी छोड़ कर ….? समीरा …एक बड़े हादसे से बाहर आने का प्रयास कर रही थी ?यह बात हममें से बहुत कम लोग जानते थे कि निकाह के कुछ समय बाद ही,दुबई प्रवास के दौरान एक हादसे में उसके शौहर का ….!उसके इसी चरित्त की संरचना “नाम मत पूछना..” ने मेरे जेहन का स्वाद कसैला कर दिया और कुछ शब्दों ने कविता की शक्ल लेली……………
नाम मत पूछना ?
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१- किसी ..
– वेबा से ……
– उसके -शौहर का ,
– नाम- मत पूछ लेना…!
– अपने हाथों की …
– उसके -सीने पे ..
– छाप -मत छोड़ देना ?
२- कुछ -घाव …
– जो -देर से सूखते हैं …?
– उन्हें …
– छू -के मत देख लेना ।।
३- हवा-पानी के साथ ..
– जैसे हैं ..
– बहेर-हाल, वैसे -छोड़ देना …!
स्वरचित- सीमा सिहं
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