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मन की परिशुद्धि …..?

khwahishein yeh bhi hain
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इस बार- मुम्बई प्रवास का समय बहुत सीमित था ।उस थोड़े से समय में कई काम निबटाने के बाद -आस्था के तीनों घरों “हांजी अली,महालक्ष्मी मन्दिर और सिद्धि बिनायक मन्दिर ” जाकर अपनी भावनाओं की भेटें चढ़ाकर,मैरिन- बीच की बैच पर बैठ ,सागर की लहरों पर जल- पंखनी का नृत्य देखने की मन में जिज्ञासा थी ,बहुत दिनों पहले एक मिलनसार दोस्त ने बड़ा आग्रह किया था की जभी -कभी अवसर मिले- तब सागर की लहरों …..? उस रहगुजर की बात का सत्यापन करने निकली थी ….,किन्तु ?

मैंने वहां आस -पास मौजूद कई संजीदा और उम्र के लिहाज परिपक्व लोगों से पूछा .?निरुत्तर किसी ने नहीं किया, परन्तु सटीक -संतुष्टि बाला जबाव कोई न दे सका ,शायद इस भ्रमित- सबाल का समुचित जबाव वह रहगुजर मिलनसार-दोस्त ही दे सकता है ,जो यदि कभी मिले तब ….?सागर के तट पर मौजूद लोगों में “एक व्यक्ति का -अजीब – भाव मिश्रित चेहरे की प्रतिक्रिया ”

‘ आज भी ,बहुत अच्छे से याद है “क्योंकि मेरे सबाल पर पहले वह घूरता रहा और फिर -आसमान की ओर देखकर जोर से ठहाके लगाकर ,दूर चला गया ।उस वक्त मैंने अपने -आप पर बड़ी शर्मिंदगी सी महसूस की -अपने नादानी भरे -बेबकूफी के सबाल पर ? उस दिन के प्रसंग ने मन में ऐसी मिली -जुली प्रतिक्रिया हुई कि…………“मन की परिशुद्धि “ की कविता में उत्तर ढूंढने का …..!

१– मेरी -निजता की …

सघनता …..

बड़ी सीमित या संगीन है ?

जैसे कि………………..

सागर कि लहरों पे …

नाचती -जल तरंगें …

२– जैसे कि ……………..

नदी के वहाव में ….

सूरज की-उतरतीं किरणें …

या ……….

दीये के आलोक में …

अविचल ……

खड़ी -उम्मीदें …?

३– शायद …….

मांटी के अँधेरे में ….

अंकुरित- होने से पहले …

बीज भी …….?

यही ,सोचता होगा …!

स्वरचित -सीमा सिहं ।।

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