Menu
blogid : 8924 postid : 195

पहाड़ पे आकर ……?

khwahishein yeh bhi hain
khwahishein yeh bhi hain
  • 195 Posts
  • 470 Comments

पहाड़ पे आकर ……?
———————-
पहाड़ पे ……
आकर …..
मैं ……
अनमनी हो जाती हूँ ,
1– अक्सर -मैं …..
देवदार के ……
ऊँचे -दरख्तों के साथ …
खड़ी हो ……?
विषाद से घिर जाती हूँ
कदाचित ..!
परिस्कृत भी हो जाती हूँ …।।
और …..
पुन : आती हूँ …
2– क्योकिं ……
सहजे ,बटोरे …
अहं के ….
ऊँचे -कद को …
झुका -कर ….
निर्भय -हो जाती हूँ ….
और …..
प्रफुल्लित हो ….
रास्ता -सुलभ पा जाती हूँ …।।
3– घाटियों के …..
दर्रों से आती ….
ठंडी -हवा के स्पर्श से ….
सिहर जाती है -मुस्कान …
कण -कण में आ जाती है ,जान …।।
4— धूप ,छाँव की ….
आँख -मिचौली से …
मिचमिचाती हैं आँख …
पर ……
अस्तित्व के साथ ,आलिंगन हो ..,
हो जाती हूँ …
निरभार …….।।
5— इसलिए ,जब -तब …
यहाँ -आती हूँ ….
और ….
कठिन -परिस्थितियों के …
घुमाव दार …..
ढलवा -रास्तों पे भी …
फिसलते नहीं -पाँव ?
पांव ……
रास्ता ,बनाते अपना -आप ..!

स्वरचित -सीमा सिंह ।।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply