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मालिक की नीयत …..?

khwahishein yeh bhi hain
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मालिक की नीयत …..?

हमेंशा की तरह इस बार भी -एक – एक कर अडोस -पडोस घरों की सब काम वालियां अपने -अपने गाँव -देश जाने की तैयारियां कर रहीं थी ।बहुत सी जा भी चुकीं थी हमारी शकू भी जाने बाली है -उसकी माँ राजकुमारी कई वर्ष पहले हमारे यहाँ काम पर पहली बार लगी थी ,तब पहले दिन दबी सकुचाई सी राज कुमारी ने अपने जीवन – वृतांत का जो करुण चित्रांकन किया ,उसे सुनकर मैं स्तब्ध रह गई ?
यह सोचकर कि क्या कोई मालिक इतना भी अन्यायी हो सकता है कि अपने खेत में जानवर की तरह काम लेने के बावजूद मालिक अपने मजदूर के प्रति संवेदन शून्य-कैसे हो सकता है ,कोई इन्सान ,इन्सान की बुनियादी जरूरत भूख की आवश्यकता की मांग को कैसे नकार सकता है ?यथार्थ यही था कि राज कुमारी का निर्धन परिवार -भूख की व्याकुलता को सहन नहीं सका- और अपना देश -छोड़ पलायन कर यहाँ ……!राजकुमारी की के मनोभावों की शक्ल में ,मैं जब सोचती हूँ तब द्रश्य जो बनता है वह इस तरह है …..?
मालिक की नीयत ….?

1— मढ़ई में …….
सुस्ता रहे …।
किसान से ….?
हारे हुए ….
मजूर ने ….
सकुचाते हुए ….
कहा …..?
2– मालिक ….!
फसल – कट गई ..,
खलिहान -भर गए ..
अब -हमारी भी ..?
मंजूरी …?
3– मालिक ने …
पसीना -पोंछते हुए …
कहा ….
तेरी- मजूरी …?
बड़ी नहीं …!
4— नीयत मेरी …
खोटी नहीं …!
फसल अभी …
बिकी नहीं ….
तिली अभी -निकली नहीं …
और …….
तिजोरी …..
अभी – भरी नहीं …
5— क्या ….?
कुँए के -पानी से ….
भूख ,प्यास ….
तेरी -बुझी नहीं ..?
जानू …..?
मैं …..
पसीने की -वादी …
तेरी -छटी … नहीं !
स्वरचित -सीमा सिंह ।।

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