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माँ का होना …..!

khwahishein yeh bhi hain
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दुनियावी -रिश्तों में माँ शब्द के ख्याल मात्त से ही -मन में प्यार ,मंमता व करुणा की अनगिनत रुन- झुन करती पुष्प पल्लवित करती किलकारियां कानों में बजने लगतीं हैं |माँ शब्द की सार्वभौमिकता,समवेदंशीलता की पाकीजगी -इतनी बेदाग है- कि उसके साथ किसी दूसरे -रिश्ते कि समानता ही नहीं की जा सकती, विशेषता -इंसानी रिश्तों में ,जहाँ पर प्रत्येक रिश्ता कहीं न कहीं लाभ -हानि के लेंन -देंन की खालिश मनो भूमि पर टिका खड़ा महसूस होता है ,ऐसे में निस्वार्थ ,निश्छल,इकतरफा अन्तरंग माँ के अनुराग का झरना ऐसा है -जो कभी किसी मौसम में सूखता ही नहीं है ,माँ शब्द का ख्याल आते ही …मन का बेलगाम घोड़ा- घर की तरफ भागता है जहाँ माँ का अहसास किसी न किसी सूरत में ……!

माँ का होना …..!
——————–
सफर की …..
तख्लिफों में ……
घर -याद आया ……
घर में …….
मौजूद-माँ का होना …..
बहुत -याद आया ……|
और …….
१— दालान बाली…….
चिड़िया का ……
चोंच में तिनका ,दाना ले के …..
लौट के -घर आना ……
बहुत -याद आया …….|
और ……,
२— हाथ से- फिसल कर ….?
आईने का -टूटकर …..
बिखर जाना …….
तब-किरचों को …..
तरतीब से समेटना ….?
घर में …..
मौजूद -माँ का होना …..
बहुत -याद आया ……..|
और ……,
३— सपनों के ….
महीन-धागों का ….
बालियों में बांधना …..
और ……
बंधी- मुंडेर को …….
तोड़ कर …..?
जुगनूओं के पीछे जाना …..
चौखट से ….
ठोंकर खाना ….?
गिरना न संभल पाना ….?
फिर -माँ का पास आना ….
पुचकार के -उठाना …..
और -अपने गले लगाना …..
अनुराग -याद आया ….
घर में …..
मौजूद -माँ का होना …..
बहुत -याद आया …..|
और ……,
४— तारीखों का बदलना ….?
सुबह से शाम होना …..?
दिन ……….
हो गये -पुराने …….?
सब …….
खो गये ,किनारे …?
घर में ………………??
स्वरचित -सीमा सिहं ||

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