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यतीमखाने का वो लड़का …..?

khwahishein yeh bhi hain
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सुनैना को पहली -नियुक्ति देहरादून के कालेज में मिली थी ,अब जल्द ही उसे वहां जाकर अपने रहने के लिए भी इंतजाम करना था |कालेज के स्थानीय लोगों की मदद से- उसे अपनी जरूरत के हिसाब का,वकील -बिश्नोई साहब की ,”अग्रेजों के जमाने की लम्बी -चौड़ी” कोठी के ऊपरी तल पर बना हाल- नुमा कमरा समझ में आ गया ,और वह आकर रहने लगी |
कोठी के पिछबाड़े बाला-दरवाजे “जो हमेशा बंद ही रहता था “के सामने ही बच्चों का आश्रय गृह “अनाथालय ” था |उसकी सीढियों से चढ़कर जाने के बाद, बड़ा सा लकड़ी का फाटक था ,उन्हीं सीढियों पर “यतीम खाने का ….” आठ या नौ वर्ष का भोला -मासूम सा गुमसुम लड़का ” हमीं “को सुनैना ने-अपने कमरे की खिड़की से देखा था | और वह उससे दोस्ती करने की गर्ज से उसी दिन शाम को आश्रय गृह की संचालिका -से भेंट कर ,यहाँ के बच्चों को पढानें की इच्छा जाहिर आई थी -संचालिका महोदय:ने उसके प्रस्ताव को ख़ुशी -ख़ुशी स्वीकार लिया था |हमीं -बेहद शर्मिला और संकोची स्वभाव का था ,पर एक दिन सुनैना ने उससे दोस्ती कर ही – ली |
उसका नाम- हमीं किसने रखा ?इस बात की जन्म कुंडली का पता न तो हमीं को मालूम था न ही यहाँ की संचालिका को, क्योंकि यहाँ आश्रय लेने से पहले से ही ,उसकी बाज़ू पर यह नाम लिखा था |सुनैना ने “हमीं “शब्द की अपने तरीके से व्याख्या भी की थी ,हमीं अर्थात -मैं हमीं ,तुम हमीं ,वो हमीं और सब जहान -हमीं,अपने नाम की ऐसी विवेचना सुन वो लड़का “हमीं “बहुत खुश हुआ था |पर यतीम खाने की चारदीवारों से बाहर जाने को उताबला हमीं पहली बार -भागा तब सुनैना की ओर भी की सवालिया अंगुलियाँ उठीं -पर वह लौट आया |उसके बाद दुबारा -गया फिर …..?उसका कोई सुराग नहीं मिला….?पर सुनैना उसे मातत्व-नेह वश आज भी याद करती है ….!

यतीमखाने का वो लड़का …..?
———
अक्सर …..
उसे ?
आते -जाते ….
जर्जर -सी …..
यतीमखाने -की ….
सीढियों -पे बैठे …..
नाख़ून- कुतरते देखती थी …?
१— उसकी -शरारते …?
मेरा सिर दर्द थी …..
जिनके- चलते …..
मेरी -खिड़की के ….
कई-शीशे टूटे थे ….|
और ……
मुझसे -डांट भी खाई थी ….
साथ में ……
आश्रय गृह क़ी माँ से ….
सजा भी पाई थी …. |
बाद में …..
मैं .???????
अपनी -निष्ठुरता पे ….
पछताई भी थी ….
और -उसे …..
चाकलेट -दे के ….
बात -भुलाई भी थी ……,
२— फिर …
वो- लड़का ……..?
मुझे -पहचानने लगा था ….
मेरा ……..
अभिवादन -भी करने लगा था …
मुझे -देखकर …….
खड़ा भी होने लगा था …..
धीरे -धीरे …….
सीढियों -का प्यार ….
पनपने -लगा था ….
३— फिर …?
एक -दिन …..
वो -लड़का …..
गायब -हो गया …..?
यतीम -खाने में ….
कोहराम -मच गया …..
थाने -में रपट दे दी …
पूछ -ताछ शुरू हो गयी …..
सवालों -क़ी झड़ी लग गयी ….
मेरी- हमदर्दी …….
झूठ -हो गयी ……
४— एक -दिन ….
वो …..
राह-में मिल गया ….
रास्ता -काट कर …..?
अभिवादन -में खड़ा हो गया ….
मेरी ……
नाराजगी -भांप कर ….
सहम गया ….
और ……
उसी -शाम ……
थाने -में हाजिर हो गया ….
फिर -वो ……
यतीम -खाने का ……
हिस्सा -हो गया …..
जैसे -कि……
अपना -काम कर दिया ….?
और …..
५— वो ……?
एक -दिन फिर …..
गायब -हो गया …..?
खिड़की – का शीशा …..
तोड़ -कर ……..?
लौट -के न आने का ….
ऐलान-कर गया ……
सीढियों -की दोस्ती को ….
सलाम -कह गया ….?????
स्वरचित -सीमा सिंह |||||

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