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दोस्त कहते हैं ……!

khwahishein yeh bhi hain
khwahishein yeh bhi hain
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दोस्त कहते हैं ……!
सुबोध-की जिन्दगी का खाका -खींचने में बड़ी तकलीफ होती है ,वह किसी कहानी का तसब्बुर नहीं है -बल्कि मेरा दोस्त है ,जिसके स्वभाव की वास्तविक -प्रकृति की तस्वीर -खींचने में मैं आज भी असफल हूँ |उसने अपनी जिन्दगी के ढर्रे को -अनजाने रास्तों की ओर धकेल दिया था |वह अपने स्वभाव का अकेला मालिक था ,उसकी खाना बदोश बंजारों सी जिन्दगी थी …वो कभी अचानक कहीं से घूमता -फिरता आता और दो -चार लम्हात- साथ बैठता ,सुस्ताता दुनियां जहान की खबर लेता और सुनाता -फिर किसी दुसरे मंजर की तलाश में …..! उसकी इस बेमानी सी जिन्दगी पर -कई बार समझाने की गर्ज उसे मैंने घेरना चाहा पर -हमेशा उसने मुझे निराश किया और उसे समझाने में असफल रही …..?इस बार बहुत -दिनों से उसका कोई हाल- चाल नहीं था …..? कल -मध्य रात्री अचानक फोन पर उसकी आवाज सुनकर मैं स्तब्ध रह गई उसकी बदली हुई कमजोर आवाज कह रही थी कि वह ठीक नहीं है -वह जापान के किसी बौद्ध अस्पताल के विस्तर पर मरणासन्न हालत में था ,अस्पताल की नर्स ने जो बताया ……उसके बाद मैं- उसके हाल पे देर तक……,और मेरी लाचारगी यह कि उसके लिए कुछ नहीं कर सकती थी |सुबोध की हालत और अपनी मनो स्थिति पर जो ख्याल आए ………………..उसी माहौल में इस कविता ने शक्ल पाई…….... दोस्त कहते हैं ……!
——
हवा में …….
उड़ती……
चिन्गारियों -को …….?
मैंने ……………….
देखा -जरुर था ……..
पर ………?
वक्त की ……….
कमजोर -बाजूओं पे …….
हाथ -रखने का ……
मुझमें ………
साहस -नहीं था …….!
1– मेरे -रहनुमा …….
दोस्त …….
कहते -हैं …………
मुख्तलिब – मौसमों में …..
तुम ………….
आते -क्यों नहीं हो …….?
— अपने …….
पंचम -स्वर को ………
सुनाते-क्यों नहीं हो ……?
सोये ……….
— लोगों -को …….
जगाते -क्यों नहीं हो ….?
कोई ……
रास्ता ………
बनाते -क्यों नहीं हो ……?
2– हवा -में मौजूद ……
चिन्गारियों -को …….
बुझाते -क्यों नहीं हो …..
थक -गये हो ……?
तब …….
किसी ……..
मोड़ -पे …….
रुक -जाते क्यों नहीं हो ….?
स्वरचित -सीमा सिंह |||||

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