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उन्होंने- कहा कि……?

khwahishein yeh bhi hain
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उन्होंने- कहा कि……?
मानसी के बाबूजी को मैं भी बाबू जी ही कहती थी ,उनके प्यार के अनुराग की घनी छाँव की स्म्रतियों को “जो मेरे और मानसी के बचपन की अनगिनत सुखद यादों से जुड़ीं है,जेहन की स्लेट पर बाबू जी की कितनी ही बोलती सी तस्वीरें हैं ,जिन्हें याद किये बगैर -हमारे बचपन का प्रसंग समाप्त ही नहीं किया जा सकता है ” कैसे भुलाया जा सकता है उन- बाबू जी को | कुछ दिन पूर्व-परेशान हाल में, मानसी- अकेली ही आई थी,तभी घर और बचपन की बातों में ……. मानसी ने बताया कि उसकी माँ की मौत के बाद सब बिखर सा गया है ,उसके दोनों भाई अकेले बाबू जी के साथ आकर रह नहीं सकते और बाबू जी अपना घर और शहर छोड़ कर ,इस उम्र में कहीं जाना नहीं चाहते हैं ,उनके अपने तर्क हैं कि इस बुढ़ापे में मैं किसी बेटे पर अपना ……….! बाबू जी क़ी ओर से चिंतित मानसी ने बताया ,जब माँ के न रहने पर बड़े -भैया अपने परिवार के साथ चले गये और तब दूसरे – दिन छोटे – भैया को बाबू जी ने बैठक में बुला कर कहा कि बेटा ,तुम्हें जाना है तुम भी जाओ -तुम मेरी चिंता मत करो ……!आज मानसी के साथ -साथ बाबू जी की मुझे भी बहुत चिंता होती है | बाबू जी को मैं जितना जानती हूँ उस द्रष्टावली से जब सोचती हूँ कि उन्होंने बेटों से क्या सोचकर और कैसे कहा होगा,उसे अपने शब्दों में मैंने- कहा तब कुछ इस तरह कि …………………………………. उन्होंने- कहा कि…..?
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फ़िक्र के ….
कुहासे -से …..
निकल कर …….
वैसाखियां-टेक कर ….!
उन्होंने-कहा …….
बाक़ी-चले गये ……,
तुम्हें -जाना है …..?
तब …………!
तुम -भी जाओ …….
असमंजस में ……..
रहने- की जरूरत नहीं ……
१——– खुद से-पूछ लो …….?
साथ -चलना है …….
तब -ही चलो ……….
पीछे …………..
घिसटने-की जरूरत नहीं …..!
२——— क्योंकि …………
तब्दीलियाँ ………..?
जिन्दगी- की हकीकते हैं……..
ख्वाब -की ……
संगतें- नहीं……..
दिन -रात में……..
आँसुओं-को ………..
घोलने -की जरूरत नहीं …….!
आगे …
बड़-जाओ ………….
पीछे …
देखने- की जरूरत नहीं ……!|||
स्वरचित -सीमा सिंह ||||||

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