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मैं -तो दास हूँ ……!

khwahishein yeh bhi hain
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मैं -तो दास हूँ ……!
क्या समयातीत -दूरियों को ,मानवीय सम्वेदनशीलता लाँघ सकती है ? मैं औरों की नहीं जानती पर मेरी अनुभूतियों की सम्वेदनशीलता के अनुभव हाँ कहने को कहते हैं ,क्योंकि ऐसा मानने के मेरे पास -मेरी कविताओं की शक्ल में ठोस आधार हैं ……|
उस रात्री -महान कवि ह्रदय लेखक और दार्शनिक गुरुदेव ठाकुर रविन्द्र नाथ की एक अमर काव्य कृति-देर तक पढ़ते -पढ़ते आँखे बंद हो गई और मैं गहरी नींद में थी ,उस रात्रि के स्वप्न की सजीव -जीवन्तता का द्रश्य मेरी स्मृति पटल पर अभी भी जूँ का तूँ याद है क्योंकि मैं साफ -साफ देख रही थी कि मैंने एक कविता लिखी ,जो मेरे वर्तमान चिन्तन विषयों से सर्वथा -भिन्न थी ,बाद में जागने पर किसी -अन्तः प्रेरणा के बशीभूत हो मैनें वह स्वप्न की पंक्तियाँ- कविता की शक्ल में यथार्थ के कागज पर ” मैं -तो दास हूँ ….” उतारी भी जो गुरुदेव की रचना -संसार से कुछ -कुछ मेल खाती है ,ऐसी “मनोभावों की “परिस्थिति जन्य -सूरत ,में मैं सोचती हूँ ,कि क्या समयातीत …………………………….सो …………………………..!
मैं -तो दास हूँ ……!
—-
हे !प्रभु …….
तेरे ………
बनाये -हुए ……
सांचे -में ……..
मैं ……..
जस का तस ,ढल गया …..|
१—- तेरे ………
तय-किये ……..
रास्ते-को ……..
बदलने – बाला ……
या -न मानने बाला …….
मैं -कौन होता हूँ……..
अपनी -इच्छों के ……
केश -खोल कर दिखाने-बाला …..
भला …!
मैं -कौन होता हूँ …….|
२—- हे ! प्रभु …..
मेरी ………
आँखों -में ……
बहती -हुई धार पर ……
तू ………..
विचलित-मत हो …….
यह ……….
“इस -काया के …..
ताने -बाने के बीच …..
संस्कारों -की……
कच्ची -गाठें हैं …..”
जो ……..
एक -पढ़ाव पर ……
ठंडी -हो ……..
सूख जाएगी …….
पठार -हो जाएगी ……
और ……….
हे !प्रभु ……
तेरे -साथ …….
चलने -को ……..
प्रतिबद्ध -हो जाएगी …..
३—- हे !प्रभु ………
तेरी -करूणा का पात्र हूँ ……
यह ……………
निर्धारण -करने बाला ……
मैं -कौन होता हूँ …………
मैं -तो ……..
तेरा ………
अनुचर -दास हूँ …….
और …………
तू-मेरा ……….
दया -निधान है …….!
स्वरचित -सीमा सिंह ||||

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