khwahishein yeh bhi hain
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कई- नश्तर मर्म के ……….!
———
एक – एक कर ………
कई – नश्तर ………
मर्म – के आर -पार हुए ……..
शेष – बचता ………..!
फिर – भी …………..
मरता – मुझमें कुछ भी नहीं ……..|
१—— ऐसा – लगता है ……….
हम – सब ………..
अपने – -अपने सफर के मुसाफिर हैं ………
जिसमें – …………….!
मिलता – बहुत कुछ ………..
पर …………………..
जुड़ता – हममें कुछ भी नहीं ………..||
२—— मेरे – बानगी ………..
कुछ – भी कयास लगाएँ………
मैं – हवा में बांधता कुछ भी नहीं ……..
हाँ …………..
अपने – फन का माहिर हूँ ………
लोगों – जैसा ……….
मुझमें- घटता कुछ भी नहीं …….|||
३—— मैं ………….
रहता हूँ – इंसानी बस्ती में …….
मिलता हूँ- सबसे ………..
पर …………..
अपनी – बानगी ……….
चाहता – उनसे कुछ भी नहीं ……..||||
स्वरचित -सीमा सिंह ||||||
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