khwahishein yeh bhi hain
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भावनाएं ……..!
जो …
समुद्री – झाग सी …
अंतहीन – दिशा से आती हैं …|
और …
अपने -क्षणिक आवेग से …
देह के, मन के तटों को छू कर …
अंतहीन – दिशा को लौट जाती हैं …!
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अभिशाप ……!
—-
उसने …
कहा -मेरा यही अपराध है …|
बाजार के परिद्रश्य में …
सच – बोलना ही अभिशाप है …||
स्वरचित – सीमा सिंह ||||
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