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विराह – गीत कोयल ने ………….!

khwahishein yeh bhi hain
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विराह – गीत कोयल ने

विराह गीत कोयल ने गया ,
बागबां का मन घबराया .
१—- पत्ता डोला , डाली बोली,शाखाओं ने आँखें खोलीं,
मौसम बदला, बादल गरजा,काली घटा ने आंचल खोला |
विराह गीत कोयल ने …,
२—- दरिया ठहरा,नदिया सूखी,सागर भी है सहमा-सहमा,
हवा बसंती भी है बदली,फागुन भी हो गया जोगिया,जंगल में बीरानी छाई ||
विराह गीत कोयल ने …,
३—- सावन की बूदों ने जैसे मेरे- मन में आग लगाई,
चंचल हिरनी हुई वाबरी, मीठे बेर भी लगे कसैले,
जहर बुझा पानी भी पीकर ,
नहीं बुझी विराह की आंधी .||
विराह गीत कोयल ने …||||||

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