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कोई पाप न था …!

khwahishein yeh bhi hain
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कोई पाप न था …!
———–
मेरा
उससे,सम्बोधित करने वाला
अथवा
अंगुली पकड़ के
साथ – चलने जैसा
विशेष- रिश्ता नहीं था,
बस,दौड़ती हुई
जिन्दगी की पटरियों पे
दुखों को बाँटने का
साझा – भर था ।
1— वो भी
दूर का मुसाफिर था ।
मैं भी
भटका हुआ रास्ता था ।
हम,जमीनों से कटे हुओं के
सिरों पे
कोई भी साया न था,
ऐसे में
एक – दूसरे के
साये के नीचे
खड़ा होना
प्रकृति का विधान था
कोई पाप न था ।।।।।

स्वरचित – सीमा सिंह।।।।

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