khwahishein yeh bhi hain
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जमीन को नापते नापते ………?
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उस- दिन
जमीन को
नापते- नापते
मेरे
पांव थक चुके थे
तलवे
दुःख रहे थे
दिलासा देने वाला
आस – पास कोई न था
फसल को
लगाने और उगाने में
जहाँ,मेरा हाथ था
वहां
पीठ – थपथपाने वाला
कोई हाथ न था
ऐसा लग रहा था …
धमनियों का
शिराओं में
दौड़ रहा रक्त
बाहर आ जाएगा
और
जमीन से
एक सार हो जाएगा ।।।
स्वरचित – सीमा सिंह
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