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मिजाज के उठते- गिरते पारे को ……..!

khwahishein yeh bhi hain
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मिजाज के उठते- गिरते पारे को ……..!
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मौसम के साथ
बदलते – चेहरों को देख
मिजाज के
उठते – गिरते पारे को देख ।
1— हो गई होगी
भूल कोई,ऐसी-वैसी
ढहती दीवार के साथ
गिरती बुनियाद को देख।।
2– न चाल
धीमी रख न तेज
मुबारक मौकों पे
नाचते- पैरों को देख ।।
3— जा रही लपट
जो आसमां की ओर
ऐसे लम्हात में
झुकी डालियों की,कतारों को देख ।।
4— जो आया, लौट के लम्हा
हाथ आए न आए
डूबती लहर को
आँख भर- भर के देख ।।।।
स्वरचित सीमा सिंह ।।।।

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