khwahishein yeh bhi hain
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तेरी सादगी पे,लोग …………?
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ये-लचीली डाल
तेरी सादगी पे
लोग हंसते हैं
पर,मैं बेचैन हो जाती हूँ
और- तेरे पास बैठ जाती हूँ ;
ये लचीली ………………..?
तेरे – साथ,हर रोज
हवा की ये छेड़छाड़
कोई न कोई बवाल मचाती है
और तू ,समय के
तेज – हाथों की खरोंचों पे
बस!थोड़ी सी अनमनी हो जाती है
पर- मैं तिलमिला जाती हूँ ;
ये लचीली …………………?
तेरी – सोच के ये नक्षत्र
मुझे टिकने नहीं देते
जमीनी सतह पर चलने नहीं देते
कोई एक लम्हा …
फुर्सत का जीने नहीं देते ;
ये लचीली ………………?
सुख,दुःख की
तेरी ! क्या पहेली है
तेरी – तू जाने
पर ,मैं भ्रमित सी
कुछ से कुछ और हो जाती हूँ ;
सच !जान ,मेरी तो
जमीन- ही खो जाती है ?।।।
सीमा सिंह ।।।।
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