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धूप- दिखाने बाले लोग ……..!

khwahishein yeh bhi hain
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धूप- दिखाने बाले लोग ……..!
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ख्वाब को,धूप दिखाने बाले
लोग – मिले थे ।
परछाई को,ताप देने बाले
लोग – मिले थे ।।
कहानी का एक सिरा
ले के साथ चले थे,
दास्ताँ-सुनाने बाले
लोग-मिले थे ।।
हम – भूल गये,किस मौज के
साथ चले थे।
रास्ता – दिखाने बाले
लोग – मिले थे ।।
हम चुप थे ,जेहन की
हलचल ही गुमगश्ता थी ।
हवा में सिर – बजाने बाले
लोग – मिले थे ।।
कुछ कहना, हमें आया नहीं
हैरानगी में,ठगे से खड़े थे
दरबार – लगाने बाले
लोग – मिले थे ।।।
सीमा सिंह ।।।।

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