khwahishein yeh bhi hain
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ठहरी नदी में …….!
——–
हवा के दबाव से
पेड़ – चटकने लगे,
सिले – जोड़ खुलने लगे ।।
दिल की बेकरारी का,
सबव देखो ।
ठहरी – नदी में,
उबाल आने लगे ।।
मुसीबतों का हल ये ,
शिकस्ता – पांव पढ़ाव
डालने – लगे ।।
समय की होशियारी का
कहना क्या ।
नदी के बहाव में ,
मांझी – नाव उतारने लगे |||
सीमा सिंह ।।।
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