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चश्में – बददूर, लोग क्या -क्या ……!

khwahishein yeh bhi hain
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चश्में – बददूर, लोग क्या -क्या ……!
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चश्में- बददूर,लोग क्या -क्या
माहौल बनाते हैं ,
एक हम हैं जो मुसीबतों को
अपना घर दिखाते हैं ।।
हिज्र के मौसम में,
जन्नते- ख्वाब लोग देखते हैं।
वाखूब – अपना-आप हम देखते हैं ।।
चाँदनी -रात में लोग,
क्या -क्या सोचते हैं ।
सितारों – से आगे का,
जहान-हम देखते हैं ।।
बीमार -लम्हों में ,
परछाइयाँ लोग पकड़ते हैं ।
बारिस के मौसम से,
धूप – छाँव का हिसाब -हम पूंछते हैं ।।
दिल- शीशे के मानिंन्द है,बजाहिर
पत्थरों से रोज ही टकराते हैं ।।।।
सीमा सिंह ।।।।।

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