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अँधेरे की बानगी ……….?
देश की राजधानी दिल्ली में पिछले दिनों के एक मनहूस दिन,उस युवती के साथ दरिंदगी और हैबानियत का जो दुर्व्यवहार हुआ ,उसकी गूँज ने पूरे जनमानस की चेतना में ……..? इस शर्म नाक घटना ने मेरे मन में- विचारों -का एक ………?इसी भावावेश में जो कलम ने कहा उसे कविता की शक्ल में ………;
अँधेरे की बानगी ……?
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उस दिन
तूफान -अपनी जिद में था ।
हवा भी
विपरीत – दिशा में थी ।
चारों -तरफ
अँधेरा ,और अँधेरा और अँधेरा
गणित शास्त्र,भूगोल शास्त्र ,समाजशास्त्र ,और
नागरिक शास्त्र के अर्थ ?
दंडनीय,विरोधाभाष के दंश चुभा रहे थे ।
मेरे -विश्वास के खेत को
इंसानी -जानवर …?
चारो -तरफ से,
स्याह -अँधेरा घेरे था ।
मैं???
मेरी -बोटियाँ नोच -नोच कर
नर -पिशाच और भूत ?
सच -तो
यह है ,मैं सोती रहना ही चाहती हूँ
आँख खोलना ही नहीं चाहती
प्रत्यक्ष, जो है?
देखना नहीं चाहती ।
ये – अँधेरा भी ?
अब – पर्याप्त नहीं ?
शेष ?
कुछ -बचा नहीं ।
इक – अँधेरा ,स्याह कालिमा लिए हुए ?
साथ में रुदन,घुटन भरी सिसकियाँ
और माहौल में दबी -दबी
तैरती – सुगबुगाहटें ?
सवेरा ?आता है
पर
अँधेरा -मुझे छोड़ता नहीं ?
मैं , जानती हूँ
न्याय की नपुसंक्ता
भेड़ियों- के दलालों के साथ
उलझ- नहीं पाएगी?
कुछ -करने जैसा,कर नहीं पाएगी ?
शेष -बची
कुछ -मुट्ठी भर आवाजें ?
जो -मेरी आत्मा को
संरक्षण दे नहीं पाएंगी ।
अँधेरे -के बानगी ?
चुप हो जाएंगी ?
कुछ कर नहीं पाएंगी ???
सीमा सिंह ।।।।
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