khwahishein yeh bhi hain
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सफेदी उतरने लगती है ……!
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हवा -जहाँ तेज चलती है ?
घरों की ,सफेदी उतरने लगती है ।
कुछ कहने की जरूरत नहीं,दीवारों से
खुद-ब-खुद पपड़ियाँ उतरने लगती हैं ।।
हवा -जहाँ तेज चलती है ?
पर्दों के ,सायों की तस्वीर उभरने लगती है,
जमीन -भीतर से सिमटने लगती है,
पत्थरों पे बर्फ जमने लगती है,
दिलों -पे कयामत बरसने लगती है ।।
सीमा सिंह ।।।
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