khwahishein yeh bhi hain
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पहचान मिटा दी ……..!
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दरम्यां – जो दीवार थी गिरा दी,
उस -शख्स ने,पहचान ही -मिटा दी ।
किनारों पे
समेटने- जैसा कुछ बचा नहीं ,
आँसुओं ने- बाड़ सी ला दी ।
कोई नहीं जानता
क्या खरीदा, क्या बेचा गया
मजबूरियों ने तबाही सी ला दी ।
सिला ! वही पुराना, जाती -मौज ने,
मांझी- को आवाज सी लगा दी । ।।
सीमा सिंह ।।।।।
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