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वो जोर-जोर से कराह ……?

khwahishein yeh bhi hain
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वो जोर-जोर से कराह ……?
…………..
परिसर के,
आहते की बेच पर बैठा
थका-हरा सा बाप ,
कुछ बुदबुदा रहा था,साथ-साथ
अँगुलियों के पोरों को गिनता और
कागज के एक टुकड़े पर
कुछ/ लिख लेता …
पुन: फिर कुछ याद करता
और उसी कागज के टुकड़े पर
कुछ / और लिख लेता ;
वो / जोर-जोर से कराह रहा था
आस-पास परिचित,अपरिचित ?
बेखबर !
उसकी ओर/ पीठ किये …
अपनी-अपनी नींद सो रहे थे,
अपने-अपने सपने/ जी रहे थे
नींद !
मुझसे/कोसों दूर जा चकी थी ?
मैं/परिसर से,कभी बाहर जाती
कभी/भयभीत हो भीतर लौट आती …
उसकी/पीड़ा असहनीय थी ?
उसे /देख नहीं पा रही थी ?
मेरा ! दुःख …
क्या/ उसके दुःख को समझता है ?
या/ दुःख से /दुःख का चिरस्थाई रिश्ता है ;
या/ उसकी पीड़ा ?
इतनी घनी है कि …
सम्वेदनाओं को,
शब्दों के /बड़बोले पन की दलीलें …
समझ में नहीं आती ?
सीमा सिंह ।।।

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