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आरियाँ चलाने बाले हाथ …..?

khwahishein yeh bhi hain
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आरियाँ चलाने बाले हाथ …..?
बगीचे के
वट-व्रक्ष को बौना होते
देख रही थी ,
उसकी- दूर-दूर तक
फैली – जड़ों को देख रही थी ,
उन-जड़ों पे …
आरियाँ चलाने बाले
हाथों को भी, देख रही थी
मैं !शीशे की खिड़की पे खड़ी …
चुपचाप,देख रही थी और
देख रही थी ?
उन सदा- बहार फूलों को ,
जो डरे-सहमें, सिर- झुकाये …
आरियाँ- चलानेबाले हाथों से
अपने अपराध और पाप की ,
सजा पाने की बजह, पूछ रहे थे ?
सीमा सिंह ।।।

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