khwahishein yeh bhi hain
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पलाश के फूल जब- जब ……?
कई वर्षों से
देख रहे हैं,
मौसमों में बदलाव के
ये हेर-फेर …
कि !पलाश के फूल,
जब-जब खिलते हैं ?
पूरे -जंगल में आग सी सुलगने लगती है …
चिनगारियां-हवा का दामन पकड़,
ऊँचे- ऊँचे दरख्तों की शाखों पे
नृत्य करने लगतीं हैं ,
देख रहे हैं ?
चन्दन के पेड़ों पे …
जो मिट्टी की घुली-मिली सुवास ,
एक पहचान देती थी
वह,राख की शक्ल में
झड़-झड़ कर गिरने लगती है ;
देख रहे हैं ?
बर्फ के गाले,जो बालों से अठखेलियाँ कर
बसंत – ऋतु के आगमन का …?
वो-रास्ता छोंड,अंजान दर्रों से बहते जा रहे हैं …
यहाँ तक !
उत्सव-उल्लास के दिन भी,
प्रवासी परिंदों की दिशाएं पकड़ …
कहीं अनयंत्र जा रहे हैं ?॥।
सीमा सिंह |||
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