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वो- चाँद ……..?

khwahishein yeh bhi hain
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वो- चाँद ……..?
——
बहुत- बार देखा था ।
बहुत- बार हँस के,रूठ के
माँ- से मांगा था ,
वो- चाँद …
कभी-अँधेरे कभी उजाले,
छत पे उतर आता था और
कभी- खिड़की पे झांकता था
वो-चाँद …
आँख- मिचौली खेलता
हाथ आता नहीं था ,
बादलों में झट से छुप जाता था
वो -चाँद …
सपनों का !कोई मांगता नहीं ,
कोई देता नहीं हिसाब …
मगर ! आसमान की छत पे टंगा
मन – को टटोलता है ;
वो-चाँद …
सपने ! जो आदि,अनादि और अंतहीन,
सरपीली सड़क से चलते-चले जाते हैं
आप से आप …
जिन्हें – परिभाषित करने का ?
होता नहीं- कोई लाभ
आज ! फिर दोहराया गया …
वो- सवाल ?
इक – नन्हीं परी ने …
मांगा-मुझसे ” वो चाँद”
जिसे मांगा था, मैंने – माँ से बार-बार
वो-चाँद …?
सीमा सिंह ||||

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