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खत का व्रतांत सुनने के बाद …?

khwahishein yeh bhi hain
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खत का व्रतांत सुनने के बाद …?
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हाथ का निबाला
मुंह में जाते-जाते रह गया
थाली को परे -खिसका के
चौके से बाहर निकल गये
मैं जानती थी …
तिमाही-छमाही आने बाले
खत- का व्रतांत सुनने के बाद
ऐसा ही कुछ होगा,
घर ! में उस दिन …
न झाड़ू लगेगी
न ही बर्तन धुलेंगे
बस ! घड़ा और सुराही- भरे के भरे खाली और खाली होगें
मैं !जानती थी …
भरे हुए,न बरसने बाले बादलों का हाल
उनके साथ ऐसा ही कुछ होगा …
उनने मंमता ,करुणा से उपजे
दुधमुहें-दांत ,पेट के उतारे गए बाल तक
सम्भाले हुए थे ;
उनकी -खोई हुई अर्थवत्ता में
छुपी -हुई गुणवत्ता के साथ
ऐसा ही कुछ होना था,
मैं जानती थी ?
सीमा सिंह ॥॥

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