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सूरज की आँख में …?

khwahishein yeh bhi hain
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सूरज की आँख में …?

सपने …?
बड़े ही बेहय्या,बेगैरत होते हैं
मेरी मानों ! तब
बहुत हद तक धूर्त और चालक भी होते हैं
शर्म इनमें होती ही नहीं ?
आप जिये या मरें …
इन्हें परवाह भी नहीं होती ;
ये उम्मीद की बैसाखियों पे …
हवा में कतरनों से तैरते हैं
ये रात की परछाई पर ,
अपना अस्तित्व तलाशते भ्रम बाँटते हैं …
इन्हें पहचानना दुश्वार होता है ,
क्योंकि इनकी, कोई पहचान नहीं होती
कोई औकात नहीं होती …
सूरज की आँख में ?
इन्हें तिनका नजर आता है
क्योंकि !इनके आँख ही नहीं होती
इन्हें,परिभाषित करने बाला ,
जो करता है ?
उसकी उम्र कट जाती है पर ?
इनपे जूं तक नहीं रेगती ?
सच पूछो ! इनसे कोई पुस्तैनी दुश्मनी नहीं
न ही जाति -रंजिश …
पर ,ये मुझसे बगैर पूछें
जब-तब अपना जाल बिछाते हैं सम्मोहन में
उलझाते हैं और अँधेरे-अँधेरे में …
बे पंख,बेपरवाह कहीं, कभी भी …?
सीमा सिंह ॥॥॥

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