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शिकायत …?

khwahishein yeh bhi hain
khwahishein yeh bhi hain
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शिकायत …?
एक घने
फल,फूलों से लदे
झुके वृक्ष से …
दूसरे- तने खड़े
वृक्ष ने कहा
मित्र !
तुम्हारे स्वभाव की मिठास …
धूप ,मिट्टी,हवा में
सुवास,मिठास भर देती है
किन्तु ! मेरे स्वाद को …
कडुवा कर देती है और
जमीन को छूती,ये लचीली डालियाँ …
मित्र !मुझे कुण्ठित कर देती हैं ;
मेरी कद- काठी को बौना कर देती हैं ;
घने वृक्ष ने …
मौन ! तोड़ते हुए कहा
मित्र ! तुम्हारी शिकायत …?
किन्तु ! ऊँचाई …?
जमीन से अलग कर देती है ;
मुझे !अहम से भर देती है ;
प्रकृति की सम्रद्धि से …
गोद-सूनी कर देती है ;
मित्र ! ऊंचाई …?
दूसरा आसमान हो नहीं पाती ;
जमीन से जुड़ा …
रहने नहीं देती ? ॥॥
सीमा सिंह |||

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