khwahishein yeh bhi hain
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निवेदन …!
तुम्हारी आँखों का …
मूक सम्बोधन और
ह्रदय का समर्पण ,
हवा का स्पंदन जैसे के चन्दन
सांसों का चलना दिल का धड़कना ऐसा
निवेदन …?
कोई नहीं बंधन …;
और मैं ..!
काया की माया …
न जागी न सोई ?
कैसी निर्मोही …?
बन्धनों में बंधी
धाराओं में बहती
उलझनों में उलझी …
कोई न सहमति न कोई असहमति ?
देखे है दर्पण
मन की ये हलचल …
कहती है हर पल,
घाटों के बंधन …
कैसे हो संगम …?
कर दो विसर्जन ये …
प्रणय निवेदन !
सीमा सिंह ||||
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