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विदुर का कर्म …?
महाभारत ग्रन्थ में कौरव,पांडवो के बीच हुए युद्ध के विनाश कारी अंत के दोषी सभी थे उनमें व्यासदेव के पुत्र धृतराष्ट और पांडु के साथ तृतीय दासी पुत्र विदुर जो असाधारण बुद्धिमान और धर्म परायण स्वभाव के थे किन्तु वह भी …? हस्तिनापुर राज्य में उनकी भूमिका महामंत्री की थी पर क्या वह भी अपने कर्तव्य का उचित निर्वाह कर सके …? महाभारत काल का जब -जब मन में विचार उद्वेग उठते हैं तब महामंत्री विदुर के दोष जो दिखाई देते हैं ,उन्हीं का प्रसंग यहाँ …?
ये जीवन के प्रति …
अटूट विश्वास
अक्षुण मोह ?
जबकि शेष कोई ध्येय नहीं
काया की माया
जीवन की छाया ही …
तो है
जो,हस्तिनापुर का विनाश और
कुरु वंश का ऐसा …
सूर्य अस्त हुआ
कोई शेष नहीं बचा
जो …
सूर्य देव के आगमन को अर्क दे ?
फिर भी
देखो तो ?
राज्य मोह की तृष्णा ?
धृतराष्ट के साथ-साथ
गांधारी की आँखों पर भी पट्टी बंधी है
राज्य मोह की !
ये कैसी बिडम्बना है ?
मन की लाचारगी नहीं,तब …
और क्या है ;
वंश नाश में …
इनका “चुप रहना ” दोष कम नहीं …?
अकेली- द्रौपदी को ही
लांक्षित करना …
सब के कर्म-दोषों का दोषी कहना
उचित नहीं ;
उसी को क्यों
विदुर ! तुम्हारा भी दोष कम नहीं …
इस संध्या काल में
अन्यों के गुण- दोष को विचारना
उचित नहीं ;
कर्म दोष से,तुम भी मुक्त नहीं …
स्वयं को दासी पुत्र कहकर
अपना पक्ष रख कर
बचन बद्धता से बंधना ?
राजा के महामंत्री के कर्म से …
पथ भ्रष्ट होना !
क्या,कोई दोष नहीं ?
सीमा सिंह |||||
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