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विदुर का भाग्य …?

khwahishein yeh bhi hain
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विदुर का भाग्य …?
हस्तिनापुर राज्य के उत्तराधिकार को पाने के लिए पांडु -कुंती पुत्र धर्मराज युधिष्ठर,भीम,अर्जुन आदि को, जब महाराज भीष्म और विदुर जैसे ज्ञानी विवेकी कुरुवंश के हितैषियों का हस्तक्षेप भी, महाराज धृतराष्ट के पुत्र दुर्योधन से पांडु-पुत्रों को भरण -पोषण हेतु,मात्र पांच गाँव तक न दिला सके,तब अंतह:! युद्ध की परिणति से हस्तिनापुर राज्य का जो सर्वनाश हुआ …;उस युद्ध-भूमि को रक्त -रंजित देख कर,दासी पुत्र विदुर अपने भाग्य- नीमित्य सोचते हैं …;
अन्तोगत्वा …
नीतिगत पथ में,
न्याय की जीत हुई
अधर्म की हार ;
यद्धपि …! देख रहा हूँ ?
युद्ध की विभीषिका का अंत …
समस्त, खांडवप्रस्थ,हस्तिनापुर और
कुरुक्षेत्र की भूमि रक्त-रंजित ?
यहाँ-वहाँ …
नर-मुण्ड,क्षत-विक्षत अंग- भंग
कौन राज पुत्र दुर्योधन,दुश्शासन अथवा
द्रोण पुत्र अश्वथामा,सूर्य पुत्र वीर कर्ण …?
कोई, पहचाना नहीं जाता ?
सब तरफ निस्तब्धता का वातावरण …?
देख रहा हूँ !
पांडु पुत्र अपने-अपने शिविरों में
मरणासन्न ?
शोक,दुःख पीड़ा में …
व्यथित चुप चाप पड़े हैं ;
वधू -याज्ञसेनी द्रौपदी भी व्याकुल व्यथित …
अपने शिविर में अकेली क्षुब्धावस्था में ,
प्रिय पुत्रों के शोक से …
रो-रो के अर्धमूर्छित,
खिन्न चुप चाप पड़ी है ?
कदाचित !
संवात्ना का एक भी शब्द …?
अनुचित है !…
पीड़ा ? अपने-अपने हिस्से की,
सब के लिए …
असहनीय है ;
यद्धपि !मैं भी …?
असहाय हूँ ?
धर्म- कर्म,नीति,अनीति का
अंग हूँ …?
प्रसंग हूँ ;आखिर …
दासी-पुत्र हूँ …?
मन-वचन कर्म से बंधा हूँ ;
राज्य -भोग संधि का …?
भाग्य का विलाप हूँ ?
सीमा सिंह ||||

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