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कर्ण के मन की शकाएँ …?

khwahishein yeh bhi hain
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कर्ण के मन की शकाएँ …?
हस्तिना पुर की राजमाता कुंती राजकीय अहं भूल कर अधिरथ सारथी के घर अनेक उपहारों के साथ अक्सर पहुँच जाती , और सारथी पत्नी राधा द्वारा पालित पुत्र कर्ण को धर्म पुत्र स्वीकार ने पर …! जन्म से अमृत कवच-कुंडल धारी वीर कर्ण के मन में महारानी कुंती के इस कृत्य पर अनेकों शकाएँ …ऐसे ही एक अवसर के उपरांत कर्ण चिन्तन में डूबा है और …;
रानी माँ कुंती का …
राजपरिवार की मर्यादा की अवमानना कर
मेरे नगर गृह में आना और …!
अति नेह अनुराग जताना ,
विशिष्ठ ह्रदय स्थान पर बिठाना ?
मुझे ! कर्म मार्ग पर चलते हुए बिचलित करता है ;
ये उनकी …!
निष्कपट अकारण अति अनुकम्पा …?
विस्मय में भ्रमित और
अविभूत भी करती है साथ-साथ …
मेरे पाषाण ह्रदय को कर्म-पथ से
विस्मृति करती है ;
चिन्तित करती है,
शंकाओं के बीज बोती है ?
मित्र ! दुर्योधन को असहिष्णु,आशंकित और
कुंठित भी करती है ?
उनका यूँ …!
धर्म,लोक लाज मर्यादाओं को छोड़ …
तुच्छ सारथी पुत्र कर्ण को !
धर्म पुत्र अंगीकार करना ?
यथार्थ से साम्य नहीं लगता ;
उनका स्वार्थ …! कुछ भी हो …?
भले ही,पुत्र अर्जुन के हितोपकार हो ? पर
उन हाथों का स्पर्श,आँखों का सम्वाद …
ह्रदय-आकाश में
मंमता की सम्रद्धि का कुमकुम …!
अपने लिए ! मुझे कम नहीं लगता !
सीमा सिंह ||||

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