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संगीनों के साये में …?

khwahishein yeh bhi hain
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संगीनों के साये में …? सबरजीत का एक खत ,बहन दलबीर के नाम जो अपनी हिम्मत और जीबट के जुझारूपन से सबरजीत की रिहाई के लिए निरंतर अथक प्रयास करती रहीं किन्तु …?
—-
बीबी ,
आज – मैंनू ! इक बड़ा संजीदा
डरावना,भयावह और आतंकी गर्द से भरा
सपना देखा ! देखा कफस को तोड़ कर
कागज सा सफेद
एक-परिंदे को …,
आसमान में उड़ान भरते देखा और
देखा ! उसके पखों को
हवा में
टूट-टूट कर गिरते देखा ;
बीबी , देखा ! तू आई
मुझे लेने, संगीनों के साये में
साथ में लाई
मेरे पिंड – दी मिट्टी दी सौगातें और
लाई साथ
अपने – नन्हीं-नन्हीं दो मुस्कानें
मैंनू देखा ! तेरा आंसुओं से भीगा आंचल
तूने,सहलाया मेरा माथा ;
चूमी आँखे,देखा खोल के सीना
तूने !बीबी दी अनगिनत
आवाजें …? पीर-फकीरों से मांगी सौगातें
दुआ-ताबीजों की बांधी गाठें
पर ! दब गई ?
तेरी आवाजें …?
शायद ऐसे ही ,
सरहदों के उस पार और
इस-पार की सियासती
बिछाई जाती हैं कालीनें, बैठती हैं बैठके और
बेमन से लड़ी जाती हैं लड़ाईयां और
हार जाती हैं ?
जिन्दगी छोटी -छोटी सच्चाईयां …?
सीमा सिंह ॥॥

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