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देवताओं की धरती पर …!

khwahishein yeh bhi hain
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देवताओं की धरती पर …!
…….
निष्काम,निरुपाय,निरुद्देश्य …?
मनुष्य- देह के साथ
देवताओं की धरती पर
मैं ! जीना नहीं चाहती थी
क्योंकि ,देवताओं की धरती पर
देह के साथ
निष्काम कर्म करने बाले
फलरहित इच्छाओं से जीने बाले
देवताओं की तरह
देह – रक्त बीजों को
अभिशप्त जीवन की छाया में
बो नहीं पाती ;
वो,पूजे जायेंगे
पूजे जाते रहेंगे,मगर
मैंने !अपनी रक्षा में
असफल रहे ,बेजान देवताओं से
कुछ नहीं माँगा ?
कैसे मांगती ! जिन्होंने
आँख उठाकर देखा तक नहीं ,
मेरे सापेक्ष भाव के
अनुपूरक जबाव दिए तक नहीं ;
क्या ,पानी की सतह पर
तैरती हुई काष्ठ-कठौती को
देवताओं के वरदान अथवा
अभिशाप से डुबोया जा सकता …?
सीमा सिंह ॥॥

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