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भूल जाना था !

khwahishein yeh bhi hain
khwahishein yeh bhi hain
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भूल जाना था !
—-
उसकी काहिली ने
अपना
दिल खोल के नृत्य किया था
सबूत के तौर पर, मेरे पास
अफ़सोस के तुड़े -मुड़े दुकड़े थे ;
उस शहर का
यही पहला सबक याद था
मैं ! और जाता कहाँ लौट के
घर ही आना था
रास्ते के और हादसों की तरह
उसे भी भूल जाना चाहिए था
मगर ! मरियम सा
वो बेवसी का चेहरा
जेहन की दीवार पर कैनवास सा टंगा
भूलता ही नहीं
सालों – साल का यह नासूर खटकता है
फूटता नहीं भरता भी नहीं
और भुलाया भी नहीं जाता
इसे ! आप क्या कहेगें ?
संजीदगी ,बेबसी ,मजबूरी या
साधुवाद की सादगी
नहीं ! चौपालों में बैठ कर
आप कुछ भी कहे !
मैं ! इसे
सड़क पर चलते हुए
एक आम – आदमी की कमजोरी के साथ
बुजदिली की एक मिसाल ही कहूंगी
जो मुझमें है,
हाँ
जो मुझमें है ॥॥
सीमा सिंह ॥॥

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