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पापा जी !

khwahishein yeh bhi hain
khwahishein yeh bhi hain
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पापा जी !

नदी के
कच्चे तटबंधों से
उनके कमजोर हाथ,
थके कंधे ,लडखड़ाते पैर और
वो,
वो, मेरा हाथ
अपनी मजबूत पकड़ से
यही सोचकर पकड़े हैं
कि ,मुझे गिरने नहीं देंगे
जबकि, जाहिर सा
मेरा गिरना !
वो सम्भाल नहीं सकेंगे
मैं गिरी तब !
मेरे साथ-साथ आप भी गिर जायेंगे
मगर
उनके विश्वास की यह पकड़
जो मुझे कमजोर नहीं होने देती
रास्तों की गर्दन – काट चनौतियों से
हार स्वीकारने नहीं देती
उनकी मजबूत पकड़, मेरा हाथ
तब से ही पकड़े हैं
जब मैंने आँखे ही खोली थी
मैं, चलना भी नहीं जानती थी
शायद ! इस धरती पर
परिक्रमा लेते से
दुनिया की,सब बेटियों के बाप
इसी तरह के होते हैं ॥॥
सीमा सिंह ॥॥

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