हवाएं भी किस बारीकी !!
हवाएं भी किस बारीकी !!
देखो तो,हवाएं भी
किस बारीकी और संयम से
जाल बिछाती हैं,
तभी तो ! साया-ओ-दीवार को
गिरा के,आगे निकल जाती हैं !!
सीमा सिंह !!!!
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ख्बाव !!
जिन्दगी भर,
हम एक ही ख्बाव देखा किये
घर का ,भूला रास्ता
पता मुसाफिरों से पूंछा किये !!
सीमा सिंह !!!!
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तू ने ऐसा क्या !!
बूंद के कान में
तू ने,ऐसा क्या कहा
जो !हवा हो गई गुमगश्ता
चाँद सो गया जाकर बादलों के आगोश में
सूरज ने कहीं और जाकर आँख खोली ;
पर
मैनें तो एक पगदंडी चुनी थी,
पकड़े नहीं थे
दूर ले जाने बाले रास्ते !!
सीमा सिंह !!!!
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रुकी हुई घड़ी !!
आँख खुली
धूल झाड़ते हुए
रुकी हुई घड़ी से पूछा
वक्त क्या हुआ होगा लगभग
उसने पलट कार देखा
मगर चुप रही ,
साहस- जुटा पुन:गुस्ताख हो
पूछा ? वक्त क्या हुआ होगा लगभग
उसने पिछले दिनों के पन्ने पड़ते हुए
कहा,कुसूर तेरा नहीं
जा जाके किसी और से पूछ,
हालात से जूझने बाले का
वक्त क्या हुआ होगा लगभग,
अभी तो,मुझे पता नहीं !!
सीमा सिंह !!!!
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