चौपट राजा की !!
चौपट राजा की !!
नेतत्व परिवर्तन के साथ
गृह देवताओं को
नगर – देवालय में पहुंचा दिया गया था
जीवित सेनापतियों के
रक्षा-कवच उतार लिए गये थे
कई गणमान्यों को निष्कासित कर सीमा द्वार पर
कईयों की उपस्थिति को
फौरी मृत मान लिया गया था
कहीं हाथी,कही घोड़ा
चौपट- राजा की अंधेर- नगरी में
बन्दर- बाटो का दबदबा था
इन सब के बीच
बहुत अटपटा लग रहा था
अपना अस्तित्व भी शंकाओं से भांय -भांय करता
यातना की काल कोठरी में
विवेक- चाबुक फटकार-फटकार कर लहुलुहान निन्दित कर
खड़े होने को कह रहा था
सारा कुछ
उसके दांव-पेंच के लपेटे में था
मन , नित्य कर्म का सूत-कपास ओट -ओट कर
मकड़ जाल बुन -बुन कर थक चुका था
जो ! उसके लाक्ष्यग्रह से निकलने को तत्पर
लक्ष्य भेद के इम्तहाँ देने को
धूल -झाड़ खड़ा हो गया था !!
सीमा सिंह ॥॥
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इल्म का जादू !!
अपनी तरहा से अगर जो खुशबुएँ बिखेरते ।
दरियाओं के पानी में इल्म का जादू बिखेरते ॥
ख्बावों को पंख देते हवाओं से दोस्ती करते ।
ख्वाहिशों के घर मोहब्बत के पैकर बसते ॥
चमकते चिराग,जुगनू सितारों का साथ देते ।
पत्थरों के सीने में सदा – बहारों के बीज बोते ॥
सीमा सिंह ॥॥
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