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हो न हो !!

khwahishein yeh bhi hain
khwahishein yeh bhi hain
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हो न हो !!
चन्द कुछ दिनों बाद
जब मैनें अपना चेहरा देखना चाहा
वहाँ ! और बहुत से थे
मगर ! वो नहीं था ?
इक बार को लगा
मैं कहीं गलत जगह आ गया ;
अनजान बस्ती
अजनबी लोगों के बीच
पर
गूंगी चीजें ? पहचान रहीं थीं
दरो -दीवारें भी सिर हिला रहीं थीं ;
खैर ! ये गये -गुजरे
दिनों कि बातें हैं
यादें हैं ,यादों की सौगातें हैं ;
अब तो
बहुत से चेहरे भूल चुका हूँ
बहुत से याद हैं
जो याद हैं
वो भी, मेरी ही तरह
हो न हो
तुड़े -मुड़े फटे-पुराने नोटों की तरह
किसी बरसाती की छत को घूर रहे हों ?
ये कोई बड़ी बात नहीं ;
दोस्तों जिंदगी ! इक अबूझ -पहेली सी लगती है
और उसमें गुथे हुए, रिश्ते
किसी -दिलचस्प रहस्यमयी कहानियों के पात्रों जैसे !!
सीमा सिंह ॥॥

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