khwahishein yeh bhi hain
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देवालय के स्वर !!
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देवालय से प्रार्थना के
आते स्वरों में
दबी- जुबां से
चढ़ती हुई सीढ़ियों ने, कहा
क्या तुम ! समय के उस पार का
देख सकती हो ?
आज !
देह से हुआ,आत्मा का सम्वाद सुन
मैं ! अहोभाव से
नदी सी पुलकित थी,
देवालय से प्रार्थना के
उच्च-कोरस स्वरों में
दबी- जुबां से
जागी हुई सीढ़ियों ने,जाते हुए
मेरा फिर रास्ता रोका और, कहा
क्या तुम ! टूटे घुंघरूओं में
देवताओं की हंसी और दासियों का अट्टाहस
एक साथ सुन सकती हो ?
आज !
देह का चेतना से जुड़ा
सूत्रधार पाकर
मैं ! चिंतित ,व्यथित
भार से झुकी, रीढ़ के टूटने पर चट्टान सी थी !!
सीमा सिंह ॥॥
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