Menu
blogid : 8924 postid : 1143014

khwahishein yeh bhi hain
khwahishein yeh bhi hain
  • 195 Posts
  • 470 Comments

जमाने की खुशी में खुश नजर आती रही दुनिया,
मेरे जख्मों को सहलाने में सुख पाती रही दुनिया ॥

बदन के नाप को लेकर रही यह कश्मकश कैसी ,
जड़ों को काटकर शाखों को नहलाती रही दुनिया ॥

मजाया शहर भी हमने, अजी तुम किसकी कहते हो,
मुसीबत के ही मारों पे सितम ढाती रही दुनिया ॥

न जाने कैसे कैसे ख्वाब दिखलाती रही दुनिया ,
दिखा के इक सुघड़ तस्वीर बहलाती रही दुनिया ॥

चटकती हड्डियों में भूख का चश्मा जहां देखा ,
गुनहे गारों के हाथों न्याय करवाती रही दुनिया ॥
स्वरचित – सीमा सिंह ॥

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply